Sunday, October 10, 2021

लघुकथा- बस जिंदगी ही तो बदली है..!

 



रात के करीब 12 या 1 बज रहे होंगे। लंबे इंतजार के बाद रुचि और रोहित को पुणे के लिए बस मिल पाई थी। दोनों गोवा से निकले थे पुणे के लिए। कोई सीधी बस नहीं मिली तो बीच-बीच में रुकते हुए जा रहे थे। रास्ते में कर्नाटक का बॉर्डर पड़ता था। जैसे ही बस कर्नाटक बॉर्डर में घुसी चेकिंग प्वाइंट पर बस को रोक लिया गया। पुलिस के कुछ जवान बस में चढ़े और चेकिंग शुरु कर दी। दरअसल गोवा से आने वाली बसों में बाहरी यात्रियों पर कर्नाटक पुलिस कुछ ज्यादा मेहरबान रहती है। पुलिस रोहित के पास आई और बैग चेक कराने के लिए कहा। गोवा से एक निश्चित मात्रा में ही शराब दूसरे राज्यों में ले जाया जा सकता है, जिसके लिए गोवा में बकायदा रसीद भी मिलती है। 

पुलिस ने रोहित का बैग चेक किया और निश्चित मात्रा से एक बोतल ज्यादा शराब मिलने की बात कहकर रोहित को बस से उतार लिया। रोहित जब तक बस में था, तब तक रुचि शांत रही। वो पुलिस की चेकिंग प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं कर रही थी। हां, जब रोहित को पुलिस नीचे अपने साथ चेक प्वाइंट तक ले जा रही थी तो उसके माथे पर चिंता की लकीरें जरूर पड़ीं। वो खिड़की से बाहर देख रही थी। पुलिस रोहित को अंदर लेकर गई और इसी बीच पुलिस ने बस को आगे बढ़ा दिया। इधर बस आगे बढ़ रही थी और उधर रुचि परेशान हुई जा रही थी। फोन का नेटवर्क भी नहीं था। बस में भीड़ थी दोनों के बैग थे,रुचि उतर कर रोहित के पास जा भी नहीं सकती थी। सब कुछ इतना आनन-फानन में हुआ कि रुचि को भी सोचने का मौका नहीं मिला। बस आगे एक ढाबे के पास जाकर रुकी। इस बीच रुचि बदहवास हो गई। रोहित को खोने के ख्याल भर से उसका दिल बैठा जा रहा था। वो पागलों की तरह दूसरों से फोन मांगकर रोहित का नंबर ट्राई कर रही थी। 

उधर पुलिस से बातचीत करने के बाद रोहित बाहर निकला तो बस गायब। काटो तो खून नहीं। बस को ढूंढने में रोहित को 10 मिनट का वक्त लगा और उस दस मिनट में न जाने कितने खौफनाक खयाल रोहित के दिमाग में चकरा रहे थे। किसी अहित की आशंका से ही रोहित का माथा ठनका हुआ था। रोहित रुचि को बच्ची की तरह प्यार करता था, सोचिए जब कोई छोटा बच्चा खो जाए तो उसके पैरेंट्स का क्या हाल होता होगा। कुछ ऐसा ही हाल रोहित का भी था। जान निकल रही थी दोनों की। जैसे ही रोहित बस के पास पहुंचा रुचि ने उसे देखा और दौड़ती हुई रोहित से लिपटकर रोने लगी। रुचि ने कोई परवाह नहीं कि वो आसपास कौन हैं, या लोग क्या सोचेंगे। रुचि हिचकियां बांधकर रोए जा रही थी और बार-बार यही कह रही थी कि तुम्हे कुछ हो जाता तो मैं कैसे जीती। 

रुचि काफी देर तक रोहित से लिपटकर सुबकती रही रही और रोहित उसे शांत कराता रहा। उस वक्त रोहित का भी वही हाल था। प्रेम में एक-दूसरे के लिए जो तड़प होनी चाहिए थी वो दोनों में साफ दिख रहा था। रुचि ने तो रोकर हाल बयां कर दिया, पर रोहित जता नहीं पाया कि उस 10 मिनट के अलगाव ने उसे जीते जी मार दिया था। रोहित के लिए रुचि क्या थी वो शब्दों से परे था। दोनों के रिश्ते में कितनी गर्मजोशी थी वो साफ नजर आ रहा था। गौरव और रुचि को इस तरह देखकर लोग कनखियों से मुस्कुरा रहे थे, शायद कुछ दुआएं दे रहे थे, कुछ हंस रहे थे और शायद कुछ इस रिश्ते को नजर लगा रहे थे।

नजर, हां शायद नजर ही तो लग गई। पुरानी तस्वीरों को देखते हुए रोहित यही तो महसूस कर रहा है। उस ट्रिप को बीते करीब पांच साल हो चुके हैं। उसकी तस्वीरें हैं, यादें हैं, पर अब वो शख्स नहीं है, दोनों साथ नहीं हैं। आज रोहित जब उस वाकये को याद कर रहा है तो समझ नहीं पा रहा कि आखिर वो क्या था। प्यार में तड़प या कुछ और? आज जरूर रुचि कह रही है कि वो उसका बचपना था, पर उसे नहीं पता कि वो बचपना नहीं प्यार था, जो उस वक्त दोनों के दिल में बेशुमार था। उस 10 मिनट के अलगाव ने रोहित को रुचि और भी करीब ला दिया था। रोहित ने उसी वक्त तय कर लिया था, इस जन्म तक, जब तक सांसें चल रही हैं वो रुचि का साथ नहीं छोड़ेगा, उस वक्त तो रुचि को भी ऐसा लगा हो शायद। बीतते वक्त के साथ रोहित के मन में रुचि के लिए प्रेम गहरा होता रहा। रुचि ने भी प्यार की इसी गहराई को जाहिर किया था, पर अचानक पूरा रंग उतार दिया। जो 10 मिनट का अलगाव नहीं सह सकते थे उन्हें अलग हुए 10 से ज्यादा महीने हो गए। जो एक-दूसरे से बात किए बिना नहीं रह सकते थे उनके बीच कोई राब्ता नहीं है। रुचि कहती थी कि कुछ नहीं बदलता, सब ठीक हो जाता है। रोहित सोचता है कि सच ही कहती थी रुचि कि उसके जाने से बदला ही क्या है, बस जिंदगी ही तो...