‘तुम सिर्फ शादी चाहती हो ना?’
‘हां’
‘फिर तो खुश हो जाओगी’
‘देखो मुझे लगता था शादी बस साइन ही तो करना है, काम खतम, पर तुमसे जब मैंने कहा था उसी वक्त कर लेते तो मेरा दिल नहीं दुखता, तुम पर यकीन नहीं टूटता’
‘कुछ दिन पहले ही तो कहा है यार तुमने और मैंने मना भी तो नहीं किया, तुम जानती हो कि मैं शादी तुम्ही से करुंगा’
‘कर भी तो नहीं रहे’
‘करूंगा तो खुश हो जाओगी ना’
‘हां बहुत’
‘कुछ पूछ सकता हूं तुमसे’
‘हां, पूछो’
‘सच बताना शादी किसी जिद में तो नहीं कर रही हो’
‘नहीं’
‘फिर’
‘तुमसे प्यार करती हूं यार, तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं हमेशा’
‘ओके, मुझे घर जाने से मना तो नहीं करोगी’
‘मेरी सभी जरूरतें पूरी होनी चाहिए बस, मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी’
‘मेरी फैमिली बड़ी है मुझे निभाना भी पड़ेगा’
‘तुम्हारी फैमिली तुम निभाना मैंने कभी मना नहीं किया है और क्या जरूरत पड़ने पर मैंने निभाया नहीं है, तुम्हारे लिए, तुम्हारे प्यार की खातिर जमीन पर बैठकर पचीसों पराठे बनाए थे, मटर पनीर भी तो बनाया था ना तुम्हारे लिए उस गांव में, वैसे भी अपने रिश्ते खुद ही निभाए जाते हैं पुनीत’
‘हां, हां निभाती तो हो और तुम भूल गईं शायद तुम सो गईं थी, मैंने नींद में तुम्हे खिलाया था पर भूखा नहीं सोने दिया था’
‘पता है’
‘घर तो चलोगी न कभी कभी’
‘हमेशा तो नहीं जा पाउंगी’
‘वो तो मैं भी जानता हूं, पर छठे छमाही तो चलोगी ही ना’
‘हां, पर तुम मम्मी-पापा को यहीं ले आओ न’
‘यार वो यहां अभी नहीं रह पाएंगे, हमारी तुम्हारी शादी के बाद देखा जाएगा’
‘रह लेंगे, खाना भले ही ना बना पाऊं उनके लिए शायद, पर सब हो जाएगा’
‘चलो वो तो बाद की बात है एक बात और पूछूं’
‘हां बोलो’
‘मुझे छोड़कर कभी जाओगी तो नहीं?’
उधर से कोई जवाब नहीं आया
‘बोलो पलक तुम हमेशा मुझे छोड़कर जाने की बात करती हो और यही बात मुझे परेशान करती है हमेशा बताओ न मुझे जिंदगी में कभी छोड़कर जाओगी तो नहीं’
‘एक दिन मरकर अलग तो होना ही पड़ता है’
‘ये मुझे पता है, मैं जीतेजी की बात कर रहा हूं,इस जन्म में तुम मेरा साथ छोड़कर तो कभी नहीं जाओगी न’
‘नहीं, पर अगर हमारा रिश्ता सड़ा तो मैं नहीं रहूंगी’
‘जब सड़ेगा तब ना और मुझे खुद पर पूरा यकीन है कि मैं रिश्ते को कभी सड़ने ही नहीं दूंगा’
दो महीने भी तो बीते थे पलक और पुनीत के बीच हुए इस बातचीत को। एक- दूसरे से बेइंतहां प्यार करने वाले पलक और पुनीत ने खूबसूरत भविष्य के सपने के साथ एक दूसरे का हाथ थामा। प्यार करते ही थे, तकरार भी, फिर पता नहीं कैसे कुछ ही दिनों में गलतफहमियों की दीवार इतनी ऊंची हो गई कि विश्वास और प्यार की रोशनी उनके रिश्ते पर पड़नी बंद हो गई। मीलों की दूरियां दिलों की दूरियां कब बन गईं पता ही नहीं चला। उनके रिश्ते को न जाने किसकी नजर लग गई और उनका फला-फूला मुस्कुराता रिश्ता सड़ गया या शायद गलतफहमियों और अनजाने डर ने सड़ा दिया।
-धर्मेंद्र केशरी